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लेखनी कहानी -22-Jun-2022 रात्रि चौपाल

भाग 8 : प्रशस्ति गान 


कलेक्टर और एस पी साहब सामने स्टेज पर सजी दो कुर्सियों पर बैठ गये । उनके बैठने के बाद समस्त अधिकारी भी अपने अपने स्थान पर बैठ गये । कार्यक्रम का संचालन एक विद्यालय के हिन्दी के व्याख्याता आनंद राज "दुखी" कर रहे थे । भारत में जितने भी साहित्यकार हैं , विशेषकर हिन्दी के, उन्होंने अपना एक उपनाम अवश्य रखा हुआ है । किसी ने दुखी तो किसी ने सुखी । अपनी अपनी प्रवृत्तियों के अनुरूप यह उपनाम रखते हैं हिन्दी कवि । नाम से ही उनकी "विधा" छलकती है । अधिकारियों में थोड़ी खुसर-पुसर होने लगी कि एक "खुशी" के आयोजन का संचालन कोई "दुखी" कर रहा है । यह एक "रेयर कॉम्बिनेशन" है । लेकिन सरकार और प्रशासन में तो ऐसे रेयर कॉम्बिनेशन भरे पड़े हैं । 
माइक पर संचालक महोदय ने कलेक्टर साहब के "कसीदे" काढने शुरू कर दिये । वे कहने लगे 
"यहां सशरीर विराजमान परम आदरणीय और आज के कार्यक्रम के मुख्य अतिथि माननीय कलेक्टर साहब, प्रतापी एस पी साहब और समस्त अधिकारी गण । आज हम सबका बड़ा सौभाग्य है कि हम धरती पर घटित एक ऐसी "खगोलीय घटना" के साक्षी बनने जा रहे हैं जो सैकड़ों युगों में कभी कभार घटित होती है । हम वो सौभाग्यशाली "नक्षत्र" हैं जो इस अद्भुत, अद्वितीय, अवर्णनीय,  असाधारण घटना के प्रत्यक्ष दर्शी हैं । हमारे बुद्धिमान, ऊर्जावान, गुणवान, स्फूर्तिवान, युवा, स्मार्ट और कुशल प्रशासक कलेक्टर साहब ने अपने कौशल और चातुर्य से "बाड़ेबंदी" जैसी "अनदेखी, अनहोनी, अकल्पनीय" घटना का सफल आयोजन किया है । हमारे सूबे के लोकप्रिय मुख्यमंत्री साहब ने उनके इस सफल आयोजन को विश्व की दुर्लभतम धरोहर घोषित कर दिया है । हमारे जिले के इतिहास में अब तक ऐसा कोई "न भूतो न भव" कार्यक्रम संपन्न नहीं हुआ है । अतः यह हमारा परम सौभाग्य है कि ऐसी बिरली प्रतिभा के धनी कलेक्टर साहब हमारे जिले में अपनी सेवाएं देकर हम जैसे लोगों पर परम उपकार कर रहे हैं । मैं आप सब हुक्मरान की ओर से माननीय कलेक्टर साहब का हार्दिक अभिनंदन और स्वागत करता हूं और उनकी इस अभूतपूर्व सफलता पर हार्दिक बधाई ज्ञापित करता हूं" । 

कलेक्टर साहब और एस पी साहब "कॉन्वेंट स्कूल" के "प्रॉडक्ट" थे जहां पर हिन्दी बोलना और लिखना "अपराध" समझा जाता था और पकड़े जाने पर सख्त सजा का प्रावधान था । अतः संचालक महोदय द्वारा बोले जा रहे शब्द उनके पल्ले नहीं पड़ रहे थे । कलेक्टर साहब थोड़े असहज दिखाई दे रहे थे । कहीं ऐसा ना हो कि क्लिष्ट हिन्दी बोलकर कहीं कोई उनकी "हिन्दी" ना कर दे । अत: इसका भावार्थ समझने के लिए उन्होने ADM साहब को अपने पास बुलाया और कहा 
"किस नमूने को पकड़ लाये हो । ये क्या बोल रहा है कुछ पल्ले ही नहीं पड़ रहा है । इससे कहो कि ज्यादा हिन्दी झाड़कर अपनी विद्वता का प्रदर्शन नहीं करे । छंद अलंकारों में बात करने के बजाय हिन्दी में ही बोले" 

संचालक को ADM साहब ने कान में बिहारी जी का एक दोहा सुना दिया 
कर फुलेल को आचमन , मीठो कहत सराह ।
रे गंधी मति अंध तू , अतर दिखावत काह ।। 

संचालक महोदय को पता चल गया कि यहां पर उनके "गुणों" का कोई कद्रदान नहीं है । इसलिए वे तुरंत "हिन्दी" पर आ गये । इस देश में अंग्रेजी ने सभी भारतीय भाषाओं की जो दुर्गति की है वह अंग्रेजों ने भी नहीं की होगी । हिन्दी बोलने वाले लोगों को "अनपढ , असभ्य,  अशिक्षित " कहकर उनका उपहास उड़ाया जाता है और अंग्रेजी बोलने वाले लोगों को सिर आंखों पर बैठाया जाता है । 

किसी मूवी में भी जब कोई ग्रामीण पृष्ठभूमि का नायक किसी अंग्रेजीदां नायिका के अंगेजी में बोले गये डॉयलाग का जवाब जब फर्राटेदार अंग्रेजी में देता है तो संपूर्ण हॉल तालियों की गगनचुंबी गड़गड़ाहट से गूंज उठता है । हिन्दी सिनेमा के नायक और नायिका हमेशा अंग्रेजी में साक्षात्कार देते हैं और हिन्दी सिनेमा के दर्शक उनके इस अंग्रेजी ज्ञान और प्रेम पर मुग्ध होकर उन्हें महानायक , बादशाह,  सुल्तान और न जाने क्या क्या बना देते हैं । लोगों में "गुलामी" इस हद तक रची बसी है कि उसे निकलने में शायद दो चार पीढियां और खपेंगी अभी । 

कार्यक्रम को आगे बढाते हुए संचालक ने सभी अधिकारियों को स्टेज पर कलेक्टर साहब का माल्यार्पण करने के लिये आमंत्रित किया । कुछ अधिकारी अपने साथ माला लेकर आए थे । जब उनसे पूछा गया कि वे माला क्यों लेकर आए , जबकि माला का इंतजाम यहां पर पहले से ही था । तब ऐसे अधिकारियों ने बताया कि पहले भी इस प्रकार का कार्यक्रम हुआ था । उसमें बहुत कम मालाएं मंगवाई गई थी और माला हथियाने के लिये भी छीना झपटी की नौबत आ गई थी । इसलिए वे अब अपने साथ माला लेकर ही आते हैं । इसके अतिरिक्त अपनी माला भी "वी आई पी" होती है जो दूर से ही पहचान में आ जाती है इसलिए उन्हें कुछ अलग सी "फीलिंग्स" भी होती है । 

सभी अधिकारियों में "प्रशस्ति गान" की होड़ लग गई  । जैसे कि "प्रशस्ति गान प्रतियोगिता" चल रही हो जिसके निर्णायक कलेक्टर साहब हों । "भक्ति" प्रदर्शित करने का यह नायाब अवसर कोई भी अपने हाथ से जाने नहीं देना चाहता था । 

एक अधिकारी की आवाज बहुत मधुर थी । शायद वे स्टारमेकर पर गाते थे । उन्होने एक गाने की तर्ज पर एक गाना सुनाया । मूल गाना यह है 
ना फनकार कोई तेरे बाद आया 
मोहम्मद रफी तू बहुत याद आया 

इस गाने को उन अधिकारी साहबान ने कुछ तरह से गाया 

ना कलेक्टर ऐसा इस जिले में कोई आया 
मुख्यमंत्री जी ने जिसका गुणगान है गाया 

इस "चाटुकारिता पूर्ण" गाने से ऐसी सघन चुंबकीय स्वर लहरियां निकलने लगी जो वहां उपस्थित समस्त श्रोताओं के दिलों में ईर्ष्या का लावा भर्ती चली गई । "काश ऐसी कला उन्हें भी आती और वे इससे भी बढिया चाटुकारिता पूर्ण गाना बना सकते और सुना सकते तो साहब के और नजदीक आ सकते थे । मगर क्या करें ? खैर , कोई नहीं । दूसरे हथकंडे हैं हमारे पास" । सबके दिलों में ऐसे विचार उमड़ रहे थे । 

कार्यक्रम के अंत में कलेक्टर साहब का भाषण हुआ । कलेक्टर साहब ने अपना भाषण अंग्रेजी में दिया जो यह संदेश था कि माना अब "विदेशी" अंग्रेज चले गये हैं मगर राज तो हम "अंग्रेजीदां" ही कर रहे हैं और आगे भी करते रहेंगे । उन्होंने अपने भाषण में यह भी बता दिया कि हम "आई" वाले यानि कि आई ए एस, आई पी एस, आई एफ एस वगैरह तो पैदाइशी "शासक" हैं और बाकी लोग आम जनता । इसलिए इस संबंध को कभी मत भूलना । उनके भाषण का लब्बोलुआब यह था कि "हम 'आई' वाले अलग किस्म के हैं जिनके दम से ही ये सरकारें चल रही हैं । इसलिए तुम आम लोग हमें चुनौती देने की कोशिश मत करना" । 

कुछ अधिकारियों को यह भाषण समझ में आया कुछ को नहीं । कुछ को नागवार भी गुजरा लेकिन जंगल में "चूहों" की आवाज सुनी जाती है क्या ? उनके भाषण की समाप्ति पर करतल ध्वनि से आकाश गुंजायमान हो गया । 

फिर सब लोग "डिनर" के लिए लाइन में लग गए । 

श्री हरि 
18.7.22 

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4 Comments

नंदिता राय

21-Jul-2022 01:49 PM

शानदार

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Gunjan Kamal

20-Jul-2022 01:01 AM

शानदार

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Punam verma

18-Jul-2022 08:16 AM

Very nice

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